TDP-JDU के दम पर मोदी सरकार, फिर भी क्यों नहीं दे रही स्पीकर पद? यहाँ जानिए डिटेल में

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लोकसभा चुनाव और केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में लगातार तीसरी बार सरकार बनने के बाद अब सबकी नजर स्पीकर के चयन पर लगी है. माना जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) लोकसभा स्पीकर का पद अपने पास रख सकती है. 18वीं लोकसभा के गठन के बाद अब अगले हफ्ते 24 जून से संसद का पहला सत्र शुरू होने वाला है. स्पीकर के चयन से पहले यह सवाल भी हर किया जा रहा है कि टीडीपी और जेडीयू के दम पर केंद्र में बनी मोदी सरकार आखिर अपने सहयोगी दलों को स्पीकर का पद क्यों नहीं देना चाहती.

7 चरणों में लोकसभा चुनाव के बाद जब 4 जून को परिणाम आया तो बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को पूर्ण बहुमत मिल चुका था, लेकिन पिछले 2 चुनावों की तुलना में इस बार परिणाम थोड़ा अलग रहा क्योंकि अपने दम पर बहुमत हासिल करने वाली बीजेपी इस बार अकेले अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं कर सकी. बीजेपी 240 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन अपने दम पर बहुमत से 32 सीट दूर रह गई.

मोदी सरकार 3.0 में TDP-JDU बेहद अहम
हालांकि एनडीए 293 सीटों पर जीत हासिल करते हुए फिर से सत्ता में लौटने में कामयाब रहा. एनडीए में बीजेपी के अलावा इस बार नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और एन चंद्रबाबू नायडू की अगुवाई वाली तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) की स्थिति बेहद मजबूत हो गई.

टीडीपी 16 सीटों और जेडीयू 12 सीटों के साथ केंद्र में बनी एनडीए सरकार में अहम हिस्सेदारी रखती है और वर्तमान में एनडीए सरकार का भविष्य बहुत कुछ इन दोनों दलों के समर्थन पर निर्भर करेगा. एनडीए सरकार में दोनों दलों की बेहद अहम भूमिका होने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी की ओर से लोकसभा अध्यक्ष यानी स्पीकर का पद नहीं दिया जा रहा है.

इस बार स्पीकर का पद अहम क्यों
आखिर बीजेपी स्पीकर का पद अपने पास ही क्यों रखना चाहती है. तो इसके लिए करीब 25 साल पीछे जाना होगा. तब अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में केंद्र में एनडीए की सरकार थी. तब एन चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी एनडीए सरकार के साथ थी. वाजपेयी सरकार ने लोकसभा स्पीकर का पद सहयोगी टीडीपी को दे दिया था.

1999 में वो फैसला जब गिरी सरकार
साल 1998 से 1999 तक तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के दूसरे कार्यकाल के दौरान, जिसमें बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए में 19 राजनीतिक दल शामिल थे. टीडीपी के सांसद जीएमसी बालयोगी को एनडीए ने स्पीकर बनाया. इस बीच केंद्र की राजनीतिक समीकरण बदल गया. सरकार के गठन के महज 13 महीने बाद ही 1999 में वाजपेयी सरकार अल्पमत में आ गई क्योंकि जे जयललिता की अगुवाई वाली एआईएडीएमके ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया. ऐसे में वाजपेयी सरकार को विश्वास मत का सामना करना पड़ा.

वाजपेयी सरकार को बचाए रखने की तमाम कोशिश की गई, लेकिन कामयाबी नहीं मिली और महज एक वोट के अंतर से सरकार गिर गई. तत्कालीन स्पीकर बालयोगी ने ओडिशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री गिरिधर गमांग को विश्वास मत के दौरान वोट डालने की अनुमति दे दी जो हाल ही में मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए सांसद बने थे, और इस एक वोट से सरकार का पतन हो गया. स्पीकर की ओर से लिया गया यह अहम फैसला सरकार के पतन की बड़ी वजह बन गया.

डिप्टी स्पीकर का पद किसे मिलेगा?
ऐसे में बीजेपी अपनी पिछली वाजपेयी सरकार के हश्र को देखते हुए इस बार किसी का तरह कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है. राजनीतिक परिस्थितियों में बदलाव होने की सूरत में स्पीकर की भूमिका बेहद अहम हो जाती है. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की अगुवाई वाला इंडिया गठबंधन को 234 सीटें मिली हैं जबकि बीजेपी (240 सीटें) के एनडीए के खाते में 293 सीटें हैं. इस वजह से टीडीपी (16) और जेडीयू (12) एनडीए में अन्य बड़े सहयोगी दल हैं और इन दोनों दलों का कोई भी फैसला सरकार के अस्तित्व पर संकट डाल सकता है.

फिलहाल, विपक्षी गठबंधन बीजेपी की सहयोगी टीडीपी को स्पीकर का पद दिए जाने की बात कर रहा है. जबकि जेडीयू ने स्पीकर पद के लिए बीजेपी उम्मीदवार को समर्थन देने का ऐलान कर दिया है तो टीडीपी ने इसके लिए सर्वसम्मत उम्मीदवार का समर्थन करने की बात कही है. साथ ही कहा यह भी जा रहा है कि बीजेपी जहां स्पीकर का पद अपने पास रख सकती है तो वहीं वह डिप्टी स्पीकर का पद जेडीयू या फिर टीडीपी में से किसी एक दल को दे सकती है.

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